कौन से रंग का दिल है तेरा, चाहता क्या है?
लटपट सी जबान ये तेरी कहती क्या है?
चंचल सा जो मन है तेरा, सोचे क्या है?
बहके से हैं कदम तुम्हारे, चला कहाँ है?
कर सकता है सामना तो भागता क्यों है?
अब तो चैन से सो ले, जागता क्यों है?
ताउम्र जिसे तू हासिल करना चाहता था,
पा कर उसको फिर से ऐसे खोता क्यों है?
हंसने की जैसे ही वो घड़ी जो आयी,
ठुकरा के खुशियों को अब तू रोता क्यों हैं?
कब का पीना छोड़ दिया पर होश कहाँ है?
जिसने क़तरे पंख तुम्हारे चला गया वो,
पर नये पंख से उड़ने का वो जोश कहाँ है?
जिसके दम पर कूद रहे थे, उछल रहे थे,
अहंकार वो गया कहाँ, वो शान कहाँ है?
मरता था पहले, अब जीने को तरस रहा है,
पर तेरे इस जीवन में अब वो जान कहाँ है?
नींद गंवायी, चैन गंवायी, तूने तो दिन-रैन गंवायी,
काम भी भूला, नाम भी भूला, क्या होगा अंजाम भी भूला,
अधरों तक जो आ पहुंची थी, तूने तो वो जाम गंवायी।
चल हट पागल, चल हट सनकी, तू है मूरख, तू है ठरकी!
दुःख से तेरा नहीं वास्ता, ढूंढ ले फिर से नया रास्ता,
नई तरंगे जगा तू मन में, नया जोश अब ला जीवन में।